दिष्टकारी (Rectifiers) क्या होते है?

 Rectifiers क्या होते है यह कैसे कार्य करता है तथा इसके कितने प्रकार होते है !

हेलो दोस्तो इस आर्टिकल में Rectifiers के बारे में बताने जा रहे है इसके कितने प्रकार होते है तथा किस कार्य के लिए प्रयुक्त किये जाते है! जैसा कि हम जानते है कि विधुत धारा या वोल्टेज निम्न दो प्रकार की होती है 

(1) दिष्ट धारा ( Direct Current)- वे धारा जिसका किसी परिपथ में मान व दिशा अपरिवर्तित होती है अर्थात नियत रहती है उसे दिष्ट धारा कहते है! 

(2) प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)- प्रत्यावर्ती धारा में मान व दिशा आवर्त से परिवर्तित होती रहती है !

दिष्टकारी (Rectifier)- प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलने के लिए दिष्टकारी (Rectifier) का प्रयोग किया जाता है तथा प्रत्यावर्ती धारा को दिष्टधारा में बदलने की क्रिया को दिष्टिकरण (Rectification) कहते है दिष्टकारी की Output पर दिष्टधारा प्राप्त होती है ! जिसे फ़िल्टर परिपथ का प्रयोग करके शुद्ध दिष्टधारा प्राप्त कर लेते है

दिष्टकारी के प्रकार(Types of Rectifier)-

दिष्टकारी डायोड में धारा का चालन एक दिशा में होता है दूसरी दिशा में नही होता ! संरचना तथा प्रयुक्त डायोड के आधार पर दिष्टकारी मुख्यतः तीन प्रकार का होता है 


अर्द्ध तरंग दिष्टकारी( Half Wave Rectifier)- इस प्रकार के दिष्टकारी में एक डायोड का प्रयोग किया जाता है अर्द्ध तरंग दिष्टकारी में प्रत्यावर्ती वोल्टेज सिर्फ धनात्मक, अर्द्धचक्र में प्रवाहित होता है जबकि ऋणात्मक अर्धचक्र में डायोड Reverse बायस मे होने के कारण धारा प्रवाहित नही होती ! अर्द्ध तरंग दिष्टकारी का परिपथ बनने के लिए एक स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर तथा एक डायोड की आवश्यकता होती है हाफ वेव रेक्टिफायर का परिपथ प्रदर्शित किया गया है 


ट्रांसफार्मर की प्राइमरी कुंडली पर 220 वोल्ट प्रत्यावर्ती प्रयुक्त (Apply) की जाती है तथा ट्रांसफार्मर की द्वित्यक कुंडली पर निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टेज प्राप्त कर लिया जाता है ट्रांसफार्मर की द्वित्यक कुंडली के धनात्मक टर्मिनल पर एक डायोड श्रेणी क्रम में संयोजित कर दिया जाता है तथा एक लोड RL रेक्टिफायर के आउटपुट पर संयोजित होता है डायोड फॉरवर्ड बायस में संयोजित किया जाता है इस प्रकार डायोड में धारा की दिशा का चालन डायोड में P साइड से N साइड की ओर होता है तथा यह धारा लोड प्रतिरोध RL में प्रवाहित होकर एक वोल्टेज उत्पन्न करती है भार प्रतिरोध RL का वह टर्मिनल जो डायोड के कैथोड अर्थात N साइड से संयोजित है तथा दूसरे टर्मिनल की तुलना में धनात्मक होता है इनपुट वोल्टेज के ऋणात्मक अर्द्ध चक्र में डायोड रिवर्स बायस में हो जाता है तथा परिपथ में धारा प्रवाहित नही होती एवम लोड प्रतिरोध RL के सिरों पर वोल्टेज उत्पन्न नही होती ! इस प्रक्रिया में हमे दिष्ट धारा के स्पंदन प्राप्त होते है स्थिर धारा नही ! 

 पूर्ण तरंग दिष्टकारी (Full Wave Rectifier)-

पूर्ण तरंग दिष्टकारी में प्रतियावर्ती धारा का चालन दोनो अर्द्ध चक्र में होता है पूर्ण तरंग दिष्टकारी में प्रत्यावर्ती धारा के दोनों अर्धचक्रो के चालन के लिए प्रयोग किया जाता है इसमे अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की तुलना में दिष्ट धारा शक्ति तथा आउटपुट तरंग अधिक अच्छी प्राप्त होती है इस परिपथ में एक सेंटर टेप ट्रांसफॉर्मर का तथा दो D1 व D2 डायोड एवं लोड की आवश्यकता होती है पूर्ण तरंग दिष्टकारी का चित्र प्रदर्शित किया गया है 

 इस परिपथ में एक सेन्टर टेप ट्रांसफॉर्मर की सेकंडरी वाइंडिंग में डायोड D1 तथा D2 के एनोड सिरे को संयोजित किया जाता है तथा डायोड के कैथोड सिरे को परस्पर संयोजित किया जाता है सेकेंडरी वोल्टेज के धनात्मक अर्धचक्र में पहला डायोड D1 फ़ॉरवर्ड बायस तथा दूसरा रिवर्स बायस में कार्य करता है परिपथ में धारा D1 भार प्रतिरोध RL तथा ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग के ऊपरी आधे में प्रवाहित होती है! ऋणात्मक अर्धचक्र में डायोड D2 फ़ॉरवर्ड बायस में तथा D1 रिवर्स बायस में हो जाता है इस इस्थिति में D2 में चालन होता है तथा D1 'ऑफ' रहता है इस प्रकिया में धारा डायोड D2 भार प्रतिरोध RL तथा ट्रांसफार्मर की सेकंडरी के नीचे वाले आधे भाग में प्रवाहित होती है ! ध्यान देने योग्य बात यह है कि दोनों स्थितियों में भार प्रतिरोध में धारा की दिशा एक ही रहती है 


पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी( Full Wave Bridge Rectifier)

 पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी को सेतु दिष्टकारी भी कहते है इस प्रकार के दिष्टकारी में दो डायोड वाले पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ की तुलना में अधिक एवम अच्छी धारा प्राप्त होती है इसमे चार डायोड D1, D2, D3, D4 का प्रयोग करके बनाया जाता है सेतु दिष्टकारी भी पूर्ण तरंग दिष्टकारी के भांति ही कार्य करता है सेतु दिष्टकारी में सेन्टर टेप ट्रांसफार्मर की आवश्यकता नही होती !

सेतु ट्रांसफार्मर की सेकंडरी कुण्डली से प्राप्त प्रतियावर्ती धारा धनात्मक चक्र में डायोड D1 व D3 में प्रवाहित होती है! इस प्रक्रिया में D1 व D3 फ़ॉरवर्ड बायस में तथा D2 व D4 रिवर्स बायस में होते है ! 

पहले आधे धनात्मक चक्र में ट्रांसफार्मर की सेकंडरी का ऊपरी सिरा धनात्मक होता है इस इस्थिति में D1 व D3 में चालन होता है! तथा धारा का प्रवाह MEAD CFN के दिशा में होता है पुनः अगले आधे ऋणात्मक चक्र में डायोड D2 व D4 में चालन होता है तथा धारा का प्रवाह NFA BCEM दिशा में होता है ! इस इस्थिति में D2 व D4 फॉरवर्ड बायस में तथा D1 व D3 रिवर्स बायस में होता है !

धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनो ही अर्धचक्रो में अर्थात प्रत्यावर्ती धारा की पूरी तरंग में धारा की दिशा भार प्रतिरोध RL में एक ही रहती है 





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1 Comments

Unknown said…
thankyou sir for such informative blog..